कोरोना वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया में खत्म हो सकती है नीले खून वाली दुर्लभ प्रजाति हाॅर्सशू क्रैब, यह जाति 45 करोड़ साल पुरानी है।
कोरोना वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया में उपयोग हो रहा है हॉर्सशू क्रैब का नीला खून।
हेलो दोस्तों आपका हमारी वेबसाइट पर स्वागत है। दोस्तों इस कोरोनावायरस महामारी ने हम में से सभी की आम जिंदगी को प्रभावित किया है। और अब यह महामारी एक ऐसे दुर्लभ प्रजाति को खत्म होने की कगार पर पहुंचा सकती है जिसने करोड़ों वर्षों से भयंकर आपदाओं को भी झेलकर अपना जीवन बनाए रखा। और हम बात करेंगें इसी हाॅर्सशू क्रैब की जो कैसे कोविड-19 वैक्सीन की प्रक्रिया में काम आ रहा है।
हाॅर्सशू क्रैब का परिचय
किंगडम - एनीमिलीया
फाइलम - आर्थ्रोपोडा
वर्ग - मिरोस्टोमेटा
फैमिली - लिमुलस
हाॅर्सशू क्रैब एक आदिम जलीय जीव है जो कि एक दुर्लभ जाती है इसका प्रसिद्ध नाम मिसनोमर है और हम इसे घोड़े की नाल केकड़ा के नाम से जानते हैं। हाॅर्सशू क्रैब का यह नाम इस जीव को घोड़े के पैरों के खुर की तरह दिखने की वजह से मिला है। यह दुर्लभ प्रजाति 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल पुरानी है। यह समुंद्र और नुनखरे पानी में मिल जाते हैं यह अमेरिका  और साउथ एशिया के तटीय किनारों पर पाए जाते है।
यह दुर्लभ प्रजाति 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल पुरानी है। यह समुंद्र और नुनखरे पानी में मिल जाते हैं यह अमेरिका  और साउथ एशिया के तटीय किनारों पर पाए जाते है।
 यह दुर्लभ प्रजाति 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल पुरानी है। यह समुंद्र और नुनखरे पानी में मिल जाते हैं यह अमेरिका  और साउथ एशिया के तटीय किनारों पर पाए जाते है।
यह दुर्लभ प्रजाति 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल पुरानी है। यह समुंद्र और नुनखरे पानी में मिल जाते हैं यह अमेरिका  और साउथ एशिया के तटीय किनारों पर पाए जाते है।जिन आपदाओं का सामना डायनासोर नहीं कर पाए उनका सामना हॉर्सशू क्रैब ने किया
हॉर्सशू क्रैब आदिम जलीय जीव होने के साथ ही लिविंग फॉसिल यानी जीवित जीवाश्म है। क्योंकि यह 45 करोड़ साल के दौरान पृथ्वी पर आई जिन आपदाओं ने डायनासोर तक को खत्म किया, उन्हें झेल कर हॉर्सशू क्रैब आज तक जीवित बचे हुए हैं इन्हें प्राचीन प्रतिरक्षातंत्र (immune system) वाला जीव कहा जाता है।
कोविड-19 वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया में उपयोग में आता है इनका नीला खून
हॉर्सशू क्रैब के खून में hemocyanin पाया जाता है जो ऑक्सीजन का परिवहन करता है। Hemocyanin में कॉपर होता है जिसकी वजह से इनका खून नीला होता है।
कई बार विकसित की गई दवाओं में एंडोटॉक्सिंस पाया जाता है। एंडोटॉक्सिंस वायरस की ऊपरी झिल्ली पर मौजूद रहता है इससे इंसान को जानलेवा बुखार भी हो सकता है।और हाॅर्सशू क्रैब के नीले खून में एक तरल पदार्थ पाया जाता है जो तुरंत एंडोटोक्सीन मिलने पर रिएक्ट करता है और दवा का पता चल जाता है कि उपयोग में लेनी है या नहीं इसी वजह से कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण प्रक्रिया में इसका उपयोग हो रहा है।
तेजी से विलुप्त हो सकती है यह प्रजाति
2018 में की गई एक रिसर्च के मुताबिक 1940 से 1970 तक दवाओ में खतरनाक एंडोटोक्सीन की पहचान करने के लिए खरगोश का उपयोग किया जाता था। इस प्रक्रिया में हर साल हजारों खरगोश मर जाते थे 1970 में एंडोटोक्सीन को पहचान करने के लिए हॉर्सशू क्रैब के खून का इस्तेमाल शुरू हुआ।
अमेरिकन लैब में हर साल लगभग 5लाख हॉर्सशू क्रैब लाए जाते हैं और हृदय के पास से खून की नली काटकर इनका खून निकाला जाता है। फिर 2 दिन बाद वापस समुंद्र में छोड़ दिया जाता है। और कई रिसर्च के बाद यह सामने आया है की खून निकाल लेने के बाद 30% तक हॉर्सशू क्रैब मर जाते हैं। लेकिन चिंतित करने वाली बात यह है कि खून निकाले जाने की प्रक्रिया के बाद इन की प्रजनन क्षमता भी कम हो जाती है।जोकि वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट्स को ज्यादा चिंतित करती है और इनकी संख्या तेजी से घट रही है वैज्ञानिकों का मानना है जितना कारगर हॉर्सशू क्रैब का खून है और कोई  सब्सटेंस कारगर नहीं।
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धन्यवाद और गुड बाय।



Nice artical
ReplyDeleteThank you
DeleteNice
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